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चाला अखरा खोड़हा: आदिवासी संस्कृति और परंपरा को बचाने की अनोखी कवायद, 1200 लोगों को मिल रहा रोजगार 

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विवेक आर्यन, रांची : 
आदिवासी संस्कृति और परंपरा को बचाने के लिए रांची के ‘चाला अखरा खोड़हा’ नामक संस्था के द्वारा सराहनीय प्रयास किया जा रहा है। पारंपरिक वाद्य यंत्र, शिल्प कला, वेश भूषा, हथियार और कई तरह की चीजों का निर्माण और उनके विक्रय को एक चैनल के माध्यम से संचालित किया जा रहा है, जिसमें लगभग 1200 लोग जुड़े हैं। यानी 1200 लोगों को इसके माध्यम से रोजगार मिल सका है। ये ऐसे लोग हैं, जो इन पारंपरिक कलाओं में निपुण हैं, लेकिन कालांतर में मजदूरी करने को विवश हो गए। मसलन नगाड़ा या मांदर बनाने वाले लोग रांची सहित अन्य क्षेत्रों में रेजा कुली का काम करने लगे, क्योंकि मांदर या नगाड़ों की डिमांड कम हो गयी है। लेकिन ‘चाला अखरा खोड़हा’ के तहत ऐसे लोगों को फिर से उनके पारंपरिक कार्यों से जोड़ कर इन अद्भुत कलाओं को जीवित रखने का प्रयास किया जा रहा है। 

रांची के तीन स्थानों पर है आउटलेट 
चाला अखरा खोढ़ा के तहत रांची के तीन जगहों पर आउटलेट बनाए गए हैं। नामकुम के सदाबहार चौक और बजरा रोड में एक एख आउटलेट हैं, लेकिन मुख्य आउटलेट हेहल का पावाटोली में है। संस्थापक बंदी उरांव बताते हैं कि अब डीजे का जमाना है, इसलिए आदिवासी परंपरा लुप्त होती जा रही है। बंदी मानते हैं कि कलाकार यदि मांदर, बांसुरी, नगाड़ा बनाना छोड़ देते हैं, तो आने वाले दिनों में ये विलुप्त हो जाएंगे। कई वाद्य यंत्र विलुप्त हो चुके हैं। ऐसे में बंदी उरांव का यह प्रयास अहम है। 

राज्य के विभिन्न कोने में होते है निर्माण, हैंडलूम से बनते हैं कपड़े  
वाद्य यंत्रों का निर्माण राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में हो रहा है। इसमें मुख्य रुप से सिमडेगा आदि जिलों में कलाकारों से निर्माण कराया जा रहा है। कुछ निर्माण असम जैसे राज्यों में भी होते हैं। इसी तरह पारंपरिक आदिवासी जेवरों के लिए भी महिलाओं और मल्लारों को जोड़ा गया है। हेहल स्थित आउटलेट में ही हैंडलूम द्वारा कपड़ों का निर्माण किया जाता है। सभी चीजों की कीमतें बाजार के अनुरूप है। बंदी कहते हैं कि उन्हें मुनाफा नहीं चाहिए, उनका उद्देश्य परंपरा को जीवित रखना है। 

हैंडलूम से बनते हैं कपड़े, ब्लॉक्स से होता है प्रिंट 
वाद्य यंत्रों और शिल्प के आलावा चाला अखरा खोड़हा में कपड़ों की बुनाई भी होती है। ये कपड़े लकड़ी के हैंडलूम से बुने जाते हैं। इनपर ब्लॉक के माध्यम से प्रिंट किये जाते हैं। ये कपड़े 100 फीसदी खादी के हैं और लोकल लोगों के द्वारा ही निर्माण किये जाते हैं। कपड़ों में कुर्ता, गमछा, साड़ी, धोती आदि सभी तरह के पोशाक उपलब्ध हैं। 

जल्द ही ऑनलाइन हो सकेगी खरीदारी 
बंदी उरांव ने बताया कि कोई भी व्यक्ति किसी भी आउटलेट से कुछ भी खरीद सकता है। ऑनलाइन खरीदारी की सुविधा अभी नहीं है, लेकिन बंदी उरांव को 9304946611 पर फोन कर संपर्क किया जा सकता है। ऑनलाइन की भी सुविधा जल्द ही उपलब्ध होगी।